कोई अर्थ नहीं
नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
जब फसल सूख कर जल के बिन तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
छोटी-छोटी खुशियों के क्षण निकले जाते हैं रोज जहाँ,
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
मन कटुवाणी से आहत हो भीतर तक छलनी हो जाये,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
सुख-साधन चाहे जितने हों पर काया रोगों का घर हो,
फिर उन अगनित सुविधाओं का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
- राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर
* * *