कोई अर्थ नहीं

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कोई अर्थ नहीं


नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन, 
तब सुख के मिले समन्दर का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

जब फसल सूख कर जल के बिन तिनका बन गिर जाये, 
फिर होने वाली वर्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन यदि दुःख में साथ न दें अपना, 
फिर सुख में उन सम्बन्धों का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

छोटी-छोटी खुशियों के क्षण निकले जाते हैं रोज जहाँ, 
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

मन कटुवाणी से आहत हो भीतर तक छलनी हो जाये, 
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

सुख-साधन चाहे जितने हों पर काया रोगों का घर हो, 
फिर उन अगनित सुविधाओं का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।

- राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर

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