'सबके हिस्से में नहीं आता'
ये ज़मी, ये आसमान,
ये खुशी, ये मुस्कान,
रोटी, कपड़ा और मकान
सबके हिस्से में नहीं आता।
ये ऐतबार, ये प्यार,
ये आंसू, ये इंतज़ार,
सुकून भरा एक इतवार
सबके हिस्से में नहीं आता।
ये मंज़िल ये रास्ता, ये सफर,
ये रात, ये शाम, ये शहर,
हाथ पकड़ के चले, वो हमसफर
सबके हिस्से में नहीं आता।
बेशक ये किसी कहानी,
किसी किस्से में नहीं आता,
के ज़िंदगी मिलती है सबको मगर,
जीना सबके हिस्से में नहीं आता।
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