तुलनात्मक जीवन... किसका सबसे अच्छा !!!
मेरे एक मित्र की पत्नी हैं - अक्सर बीमार रहती हैं ! बीपी, शुगर, आर्थराइटिस सब है उन्हें !
अभी उन्होंने कंप्लीट चेकअप कराया तो रिजल्ट देखकर उनके हाथ पांव फूल गए क्योंकि लगभग सारे ही पैरामीटर्स गड़बड़ आए !
मुझसे कहने लगी "मैं तो खानपान में बहुत संयम रखती हूं, जल्दी सोती उठती हूं, मॉर्निंग-इवनिंग वॉक भी जाती हूं, तब भी मेरे शरीर में इतनी गड़बड़ियां क्यों निकलती है ??"
मेरे मुंह में तो आया कि कह दूं 'आप खुद ही अपनी समस्या की जड़ हैं'
मगर उनसे कुछ भी कहना सांड को लाल कपड़ा दिखाना होता... लिहाजा मैं चुप रहा !
वह महिला हर वक़्त चिड़चिड़ाहट और तनाव में जीती हैं जिसकी जड़ है - 'दूसरों से तुलना'
वह सारा वक्त तुलना में रहती हैं!
"फलां के पति को देखो, ऑफिस के साथ घर के भी सब काम करता है... और एक आप हैं !"
"उनके घर में देखो कितना डिसिप्लिन रहता है, और एक अपना घर है !!"
"उनकी सास, बुढ़ापे में भी कितना काम करती हैं और एक मेरी सास है!"
वह हर व्यक्ति, हर परिस्थिति की तुलना करती हैं और कुढ़ जाती हैं !
उनके शरीर में कोई हैप्पी हारमोंस सिक्रीट नहीं होता, लगातार कॉर्टिसोल जैसे उत्तेजना और क्रोध के हारमोंस रिसते रहते हैं ! यही कारण है कि पैंतालीस आते-आते वह बूढी लगने लगी है और उनका शरीर रुग्ण हो गया है!
तुलना का जीवन, मानसिक सुकून ही नहीं, स्वास्थ्य को भी नष्ट कर देता है !
हममें से नब्बे फ़ीसदी लोग ऐसा ही जीवन जीते हैं !
पुरुष - अपनी इकोनामिक स्थिति और सोशल स्टेटस की दूसरों से तुलना में जीते हैं,
महिलाएं - रूप-रंग, परिधान और वस्तुओं की तुलना में ....
फिर यही तुलना का जीवन वह अपने बच्चों में ट्रांसफर कर देते हैं !
पढ़ाई की तुलना, मार्क्स की तुलना, टैलेंट की तुलना, कद-काठी की तुलना..
हर बात में अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं और बच्चे की मौलिकता खत्म कर देते हैं !
यही कारण है कि मध्यवय तक आते-आते उनके बच्चे भी, उनकी ही तरह कुंठाग्रस्त और बीमारियों का पैकेज बन जाते हैं !
वे कमा-खा तो लेते हैं लेकिन व्यक्तित्व खो देते हैं!
यही कारण है कि लाखों मनुष्यों में मौलिक व्यक्तित्व एक दिखाई नहीं देता!
तुलना का जीवन हमें दूसरों की 'नकल' बना देता है और हमारा 'असल" कभी प्रकट नहीं हो पाता !
किसी जीवन की दूसरे जीवन से तुलना नहीं है.
हर व्यक्ति अतुलनीय है!
एक ही घर में, एक साथ रहते सदस्य भी एक दूसरे से पूरी तरह जुदा होते हैं!
एक सी सिचुएशन में...
एक व्यक्ति आशा में जीता है... दूसरा निराशा में,
एक खुश रहता है... दूसरा दुखी !
एक स्वस्थ होता है... दूसरा बीमार
बहुत बार हम विश्वास ही नहीं कर पाते कि अभी सुबह ही हमसे मिलकर गया, हंसता बोलता व्यक्ति, शाम को खबर मिलती है कि उसने आत्महत्या कर ली !
कारण हमारे अवचेतन में छिपा है!
सब की स्क्रिप्ट अलग लिखी गई है !
सभी के संस्कार (आलय-विज्ञान) और अनुवांशिकीय कोडिंग एक-दूसरे से सर्वथा पृथक है. यही कारण है कि दो 'थम साइन' भी एक जैसे नहीं होते !
हर व्यक्ति अपने साथ अरबों वर्षों की यात्रा लेकर चल रहा है!
हमारी "गिवेन सिचुएशन" हमारा चयन है !
हमारे माता-पिता, हमारी अनुवांशिकी, हमें मिलने वाली परिस्थितियां आकस्मिक नहीं है.., इसका ब्लूप्रिंट बहुत पहले से तैयार हो जाता है !
हमारी यात्रा के लिए जो सबसे बेहतर स्थिति है वही हमें मिलती है !
दूसरे की तरह बनने की कोशिश ख़तरनाक है !
हो सकता है कि जिस अन्य की तरह आप होना चाहते हैं उसकी अनुवांशिकी में, दुःसाध्य रोग या शारीरिक कष्ट की कोई पट्टीका भी लिखी हो!
हर व्यक्तित्व की अपनी खासियत होती है!
जंगल में अनेक जानवरों को शेर से अधिक लंबाई मिली है,
मगर जो ताकत और भव्यता शेर में है वह उनमें नहीं है !
हमारी मौलिकता ही हमारा व्यक्तित्व है, वही हमारा वास्तविक जीवन है !
वह सभी क्षण, जब हम बिना किसी तुलना के स्वयं के होने में रम जाते हैं, हमारी चेतना को हर तरफ से समृद्ध कर जाते हैं!
हम सब, पानी के बुलबुलों की तरह हैं, कोई अभी तो कोई कुछ देर से फट जाएगा !
क्यों न मिटने से पहले अपना मौलिक जीवन जी लें, अपने स्रोत को पहचान लें, और अपने केंद्र पर आ जाएं ! क्योंकि केंद्रस्थ होते ही चेतना का फूल खिल उठता है और प्रेम, सुगंध की तरह बहने लगता है, उत्तम स्वास्थ्य जिसका सह उत्पाद है...!!
Have a lovely Day