पिता

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कभी खामोश रहता है, कभी आवाज बनता है,

पिता हर पल में संजीवनी है, हर जज़्बात में रंग भरता है।

उसके हाथों में देखी है, मैंने मेहनत की कहानी,

सपनों के घरौंदे में बुनता है वो निशानी।

वो धूप में भी छाँव है, और ठंड में गरमाहट,

मुश्किलों की राह में बन जाता है वो राहत।

उसकी आँखों में देखे हैं मैंने अनगिनत सपने,

जो वो खुद पूरा नहीं कर पाया, हमें सौंप गया है अपने सपने।

पिता का होना ऐसा है, जैसे कोई नींव का पत्थर,

जिस पर खड़ा होता है, हर मकान का मंज़र।

निज स्वार्थ को पीछे रखकर, सदा दिया है उसने प्यार,

पिता के बिना अधूरी है, ये जीवन की हर बहार।

जब भी थक जाऊं मैं, उसका कंधा है सहारा,

उसकी दुआओं से ही मिलता है मुझे हौंसला सारा।

पिता का होना सिखाता है, जीवन जीने का सलीका,

हर दर्द में होता है वो, मेरी ताकत, मेरी प्रेरणा...!!!

पिता का होना ही, हमारे होने की निशानी है।

वरना तो सब एक कहानी है..........................।।

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