सुकून की तलाश में....

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सुकून की तलाश में...


सुकून की तलाश में, तू फिरा इधर-उधर । 

था मगर जहाँ छिपा, गई नहीं नजर उधर ।।

तू सोचता रहा यही कि एक दिन मिलेगा वो 

जब मिलेगा सब तुझे हाँ तभी दिखेगा वो 

तू छोड आया एक शहर तू छोड आया एक गली 

जिंदगी के संग चला जिधर-जिधर वो चली 

ये नई सी थी जगह आसंमा भी था नया 

तू उडा बहोत मगर फिर जरा सा थक गया 

इस उडान ने तुझे था दिया बहोत यहां 

चाहतो को तेरी पर नया मुकाम दिख गया 

तू फिर उड़ा ये सोच कर कि जो तलब थी अब तलक 

खत्म होगी ये वहां जहाँ दिखी है एक झलक 

लम्बा ये सफर रहा हौंसला मगर रहा 

आ गया नजर में वो था दूर से ही जो दिखा 

एक शख्स था वहां फेरे अपना मुँह खड़ा 

उसके पास वो सुकुन तुझे कभी ना जो मिला 

तूने उससे ये कहा कि रास्ता कठिन रहा 

खुश मगर हूँ मैं बहोत मुझे सुकुन है मिल गया 

क्यों अंधेर है यहाँ फेरे मुँह क्यों खड़ा 

चल सुकुन को बांट ले मैं आदमी नहीं बुरा 

फिर हुई जो रोशनी, वहां नहीं था कोई भी 

हाँ था मगर आईना, था आईना में अक्श भी 

वो अक्श था तेरा , जो था सुकुन लिए खडा 

हसके कहने ये लगा, मैं तुझमें ही था सदा रहा 

............ एक प्रश्न इन्सान का, खुद से..... 

क्या वो महज जुनून था क्या पास में सुकून था 

क्यों मुझे खबर ना थी क्या मुझमें ही था ये कहीं 

.............. जवाब... 

क्यों खुद से इतना लड रहा, जो चाह तुने पा लिया । 

अब समझ ये बात तू , कि तूझसे जो मैं कह रहा ।।

दौड में यहां सभी मुझे नहीं तलाशते 

नाम देते है कई खाक पर है छानते 

मैं दौड में आराम हूँ मैं खास ना आराम हूँ

हर किसी में हूँ बसा मैं फिर भी सबका ख्वाब हूँ 

आँख मूंद तू अभी , अभी खडा है तू जहां 

मुस्कुराके ढुढना मैं तुझमें भी छिपा हुआ

जिंदगी जो थी तेरी, थी चाहतों में घिरी 

तिरगी में तू रहा , तो मैं तूझे दिखा नहीं 

तो तिरगी को काट दे तू रोशनी को साथ ले 

अब सुकून को खोज मत , है क्या सुकून ये जान लें ।।

...................................... है क्या सुकून ये जान लें ।।

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